TOP LATEST FIVE BAGLAMUKHI SADHNA URBAN NEWS

Top latest Five baglamukhi sadhna Urban news

Top latest Five baglamukhi sadhna Urban news

Blog Article



मेरे पास ऐसे बहुत से लोगों के फोन और मेल आते हैं जो एक क्षण में ही अपने दुखों, कष्टों का त्राण करने के लिए साधना सम्पन्न करना चाहते हैं। उनका उद्देष्य देवता या देवी की उपासना नहीं, उनकी प्रसन्नता नहीं बल्कि उनका एक मात्र उद्देष्य अपनी समस्या से विमुक्त होना होता है। वे लोग नहीं जानते कि जो कष्ट वे उठा रहे हैं, वे अपने पूर्व जन्मों में किये गये पापों के फलस्वरूप उठा रहे हैं। वे लोग अपनी कुण्डली में स्थित ग्रहों को देाष देते हैं, जो कि बिल्कुल गलत परम्परा है। भगवान शिव ने सभी ग्रहों को यह अधिकार दिया है कि वे जातक को इस जीवन में ऐसा निखार दें कि उसके साथ पूर्वजन्मों का कोई भी दोष न रह जाए। इसका लाभ यह होगा कि यदि जातक के साथ कर्मबन्धन शेष नहीं है तो उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाएगी। लेकिन हम इस दण्ड को दण्ड न मानकर ग्रहों का दोष मानते हैं।व्यहार में यह भी आया है कि जो जितनी अधिक साधना, पूजा-पाठ या उपासना करता है, वह व्यक्ति ज्यादा परेशान रहता है। उसका कारण यह है कि जब हम कोई भी उपासना या साधना करना आरम्भ करते हैं तो सम्बन्धित देवी – देवता यह चाहता है कि हम मंत्र जप के द्वारा या अन्य किसी भी मार्ग से बिल्कुल ऐसे साफ-सुुथरे हो जाएं कि हमारे साथ कर्मबन्धन का कोई भी भाग शेष न रह जाए।

शिव-भूमि-युत शक्ति-नाद-विन्दु-समन्वितम्।

जिह्वाग्रमादाय करेण देवीम्, वामेन शत्रून् परि-पीडयन्तीम् ।

४१. ॐ ह्लीं श्रीं मं श्रीकीलिन्यै नमः – जठरे (पेट में) ।

हस्तैर्मुद्गर – पाश-्वज्र-रसनाः संबिभ्रतीं भूषणै –

‘तैत्तरीय ब्राह्मण’ में भी कहा है- असुरा वै निर्यन्तो देवानां प्राणेषु वलगान् न्यखनन् अर्थात् देवताओं को मारने के लिए असुरों ने अभिचार किया।

अत: श्रीबगला माता को तामस मानना ठीक नहीं है। आभिचारिक कृत्यों में रक्षा की ही प्रधानता होती है। यह कार्य इसी शक्ति द्वारा निष्पन्न होता है। इसीलिए इसके बीज की एक संज्ञा ‘रक्षा-बीज’ भी है (देखिए, मन्त्र-योग-संहिता)-

पीतार्णव-समासीनां, पीत-गन्धानुलेपनाम् ।

हेम-कुण्डल-भूषाङ्गी, पीत-चन्द्रार्द्ध-शेखराम्। पीत-भूषण-भूषाङ्गी, स्वर्ण-सिंहासने स्थिताम् ।।

सौः baglamukhi sadhna शिव-तत्त्व-व्यापिनी–बगला-मुख्यम्बा श्रीपादुकां पूजयामि । श्रीबगला-मातृका-साधना के गूढ़ नामों का अर्थ

स्वाहा’ मे सर्वदा पातु, सर्वत्र सर्व-सन्धिषु ।।३

भगवती बगला के ‘ध्यान’ को समझकर उसका समुचित रूप से ज्ञान प्राप्त करना परम आवश्यक है। ‘ध्यान´ के अनुसार चिन्तन होने पर ही सिद्धि प्राप्त होती है इसीलिए कहा गया है- `ध्यानं विना भवेन्मूकः, सिद्ध-मन्त्रोऽपि साधकः ।’ अर्थात् ध्यान के बिना सिद्ध-साधक भी गूँगा ही रहता है।

कवचाय हुम्। ॐ हौं नेत्र-त्रयाय वौषट्। ॐ ह्रः अस्त्राय फट्। ध्यान –

२१. ॐ ह्लीं श्रीं ङं श्रीभगिन्यै नमः -दक्ष-करांगुल्यग्रे (दाएँ हाथ की अँगुलियों के अग्र भाग में)।

Report this page